तुम भूल गई हो क्या.....

चंद रोज की ज़िंदगी में,
चंद लोग ही तो अपने होते हैं,
उनमें खुद को रखना,
तुम भूल गई हो क्या....
तुम साथ थी तो खुशनुमा थी नींद मेरी,
चली गई तुम यूं ही,
मगर मेरी नींद लौटाना,
तुम भूल गई हो क्या....
यकीनन बातें बहुत लंबी होती थी हमारी,
चुप सा हो गया है बजना इसका,
जैसे पहले करती थी फोन, अब करना,
तुम भूल गई हो क्या....
तुम तो खुद से भी खूबसूरत हो,
हम दोनों को ही तुम पसंद थी,
मगर मुझे खुद को पसंद कराना,
तुम भूल गई हो क्या....
देखो जो तुम नहीं तो हम कहां हैं,
तुम तो किसी और की हो,
मगर मुझमें किसी और की जगह बनाना,
तुम भूल गई हो क्या....
मैंने सब को बताया पता तुम्हारा मैं हूं,
बाद तुम्हारे पूछा कई जगह,
किसी और को मेरा ठिकाना बताना,
तुम भूल गई हो क्या....
मैं तो भूल से भी नहीं भूलता तुम्हे,
इक पल को ही सही,
पर मुझे याद करना,
तुम भूल गई हो क्या....
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•अल्फ़ाज़ी आशुतोष

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